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तिब्बती शरणार्थियों का ताेहफा:टाउ के फूलों से बढ़ी पहाड़ों की खूबसूरती

ग्रामीणों की अतिरिक्त आमदनी का प्रमुख जरिया जशपुर ठंड के इस सीजन में जिले के पहाड़ी इलाकों में रामतिल के पीले फूलों के साथ-साथ टाउ के सफेद फू...

ग्रामीणों की अतिरिक्त आमदनी का प्रमुख जरिया

जशपुर

ठंड के इस सीजन में जिले के पहाड़ी इलाकों में रामतिल के पीले फूलों के साथ-साथ टाउ के सफेद फूल भी खिले हुए हैं। इससे पहाड़ी की खूबसूरती देखती ही बन रही है। इस वर्ष टाउ के लिए मौसम अनुकूल है। किसानों के मुताबिक इस सीजन में जिले के पहाड़ी इलाकों से 10 करोड़ रुपए से अधिक का टाउ पैदा होने की संभावना है।


जिले के पंडरापाठ, बदारपाठ, सोनक्यारी, रौनी सहित अन्य पठारी इलाकों में टाउ की फसल लगाई गई है। किसान टाउ की फसल में दिलचस्पी दिखाते हैं क्योंकि यह ठंड के दिनों में कम लागत में पैदा हो जाता है और इसके अच्छे दाम भी किसानों को मिल जाते हैं। मनोरा व बगीचा ब्लॉक में इस वर्ष 3 हजार हेक्टेयर से अधिक भू-भाग पर टाउ की फसल लहलहा रही है। पिछले कुछ साल से फसल ओलावृष्टि से प्रभावित हुई थी। पर इस वर्ष ऐसी कोई प्राकृतिक बाधा नहीं आने से फसल फिर लहलहा रही है। इससे किसान खुश हैं।

यह फसल हमारे जशपुर व सरगुजा के मैनपाठ में

तिब्बत पर चीन का कब्जा 10 मार्च 1959 को हुआ था। उस वक्त तिब्बती धर्मगुरू दलाई लामा को निर्वासित किया गया। दलाई लामा सहित लाखों तिब्बतियों को भारत ने शरण दी। उन्हें यहां के पहाड़ी क्षेत्रों में बसाया गया। उत्तरी छत्तीसगढ़ की पहाड़ियों में भी तिब्बती शरणार्थी कैंप बनाए गए। मैनपाठ में बसे तिब्बती अपने साथ टाउ की बीज लेकर आए थे। मैनपाठ का मौसम टाउ के लिए अनुकूल मिला तो तिब्बती शरणार्थियोें ने वहां इसकी पैदावार लेनी शुरू की। मैनपाठ से मिलता-जुलता मौसम जशपुर के पंडरापाठ, सोनक्यारी सहित अन्य पठारी इलाकों में हैं। मैनपाठ से यह फसल जशपुर तक पहुंच गई। पूरे छत्तीसगढ़ में यह फसल सिर्फ मैनपाठ और जशपुर में होती है।

प्रति एकड़ 3 से 4 हजार का मुनाफा

टाउ के उत्पादन में लागत ज्यादा नहीं लगती और फसल की रखवाली का भी झंझट नहीं होता है। किसान मिथलेश यादव का कहना है कि टाउ में वर्तमान में प्रति एकड़ 3 से 4 हजार का मुनाफा किसानों को हो रहा है, जो व्यापारी इस फसल को बाहर की मंडी में ले जाकर बेचते हैं। वे भी अच्छा लाभ लेते हैं।

उपवास में फलाहारी के रूप में होता है उपयोग

टाऊ की फसल को फलाहारी भोजन माना जाता है और इसके आटे को उपवास के दौरान लोग खाते हैं। आज कल मोमोस नामका फास्ट फूड भी बाजार में काफी चलन में आया है। इसे बनाने के लिए भी टाऊ के आटे का इस्तेमाल होता है। यह एक ऐसी फसल है जिसका उपयोग बड़े पैमाने पर जापानी और चीनी अपने दैनिक भोजन में करते रहे हैं। साथ ही जापानी पक्षियों के चारे के रूप में भी इसका इस्तेमाल होता है।

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