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बच्चे बने माता-पिता, रचाई गुड्डे गुडिय़ों की शादी

रायपुर। प्रदेशभर में अक्षय तृतीया का पर्व मनाया जा रहा है। 10 मई को सुबह 4 बजकर 17 मिनट से शुरू 11 मई को सुबह 2 बजकर 50 मिनट पर समापन होगा। ...


रायपुर। प्रदेशभर में अक्षय तृतीया का पर्व मनाया जा रहा है। 10 मई को सुबह 4 बजकर 17 मिनट से शुरू 11 मई को सुबह 2 बजकर 50 मिनट पर समापन होगा। हिंदू पंचांग के अनुसार, वैशाख मास के शुक्ल पक्ष की तृतीया तिथि को अक्षय तृतीया के नाम से जाना जाता है। अक्षय तृतीया के दिन माता लक्ष्मी और भगवान विष्णु की उपासना करने की मान्यता है। अक्षय तृतीया के दिन सोना-चांदी खरीदना काफी शुभ माना जाता है।

छत्तीसगढ़ में इस पर्व की प्रमुखता से मनाया जाता है। मान्यताओं के अनुसार अपने आराध्य देवी देवताओं और पितरों को तर्पण करने से घर में सुख समृद्धि बनी रहती है। इस पर्व को बड़ों के अलावा बच्चे बड़ी उत्साह के साथ मनाते है। बच्चे मिट्टी से बने गुड्डे गुडिया के माता पिता और रिश्तेदार बन विवाह खिलवनों का विवाह करते है। मिट्टी से बने गुड्डे गुडियों को बच्चे घर के आंगन में मंडव सजाकर बाजा गाजा के साथ चूलमाटी लाकर हल्दि का लेप लगाते है। दूसरे दिन वर पक्ष के लोग अपने गुड्डे को दुल्हे की तरह सजाकर बारात लिकालकर नाचते झूमते हैं। उनके साथ परिवार के बड़ बुजूर्ग भी इस शादी में शामिल होकर आर्शिवाद प्रदान करते है। ऐसी ही शादी राजधानी के अश्विनी नगर में देखने को मिली। जहां बच्चे देर रात अपने गुड्डे गुडिय़ों की शादी रचा रहे थे। शाम का समय था इसलिए बच्चों की टोली चूलमाटी के लिए निकले और साथियों के साथ ढ़ोल ताशा की थाप में नाचते झूमते रहे। घर आकर बच्चों ने गुड्डे गुडिय़ों को हल्दी लगाकर रस्म पूरा किया। फिर सभी बारात की तैयारियों में जूट गए।

धार्मिक मान्यताओं के अनुसार, अक्षय तृतीया के दिन ही सतयुग और त्रेतायुग की शुरुआत हुई थी। इसके अलावा वैशाख शुक्ल पक्ष की तृतीया को परशुराम जयंती भी मनाई जाती है। माना जाता है कि इसी दिन परशुराम जी का जन्म हुआ था। आज के दिन रात्रि के प्रथम प्रहर में यानि सूर्यास्त होने के तुरंत बाद परशुराम जी की प्रतिमा की पूजा की जाती है। भारत के दक्षिणी हिस्से में इसे विशेष रूप से मनाया जाता है।  वहीं इसके साथ ही प्रसिद्ध तीर्थस्थल बद्रीनारायण के कपाट भी खुलते हैं।

शुभ कार्यों या दान-पुण्य के अलावा आज के दिन पितरों के निमित्त तर्पण और पिंडदान करने का भी महत्व है। आज के दिन पितरों के लिए घट दान, यानि जल से भरे हुए मिट्टी के बर्तन का दान जरूर करना चाहिए।

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