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अबूझमाड़ को बुझने और माड़ के गांवों विकास योजनाओं को पहुंचाने सरकार-प्रशासन जीवनदायिनी इंद्रावती को लांघने तैयार

  बीजापुर। सरकार और प्रशासन के लिए अब तक अबूझ कहा जाने वाले अबूझमाड़ को बुझने और माड़ के गांवों तक विकास योजनाओं को पहुंचाने सरकार-प्रशासन जी...

 बीजापुर। सरकार और प्रशासन के लिए अब तक अबूझ कहा जाने वाले अबूझमाड़ को बुझने और माड़ के गांवों तक विकास योजनाओं को पहुंचाने सरकार-प्रशासन जीवनदायिनी इंद्रावती को लांघने तैयार है। मांड के विकास के लिए तैयार ब्लूप्रिंट को अमीली जामा पहनाने पड़ोसी जिले दंतेवाड़ा के बारसूर इलाके में लगभग तीन साल पहले इंद्रावती पर दो उच्च स्तर पुल निर्माण की योजना बनी थी, जिसमें छिंदनार को पाहुरनार से जोड़ती पहली पुल बनकर तैयार है। वही करका घाट पर करका गांव को जोड़ने दूसरा पुल निर्माणाधीन है। अब इस पुल के भी बन जाने से दंतेवाड़ा के रास्ते अबूझमाड़ के सरहदी गांवों से विकास की नई इबारत लिखने की तैयारी में प्रशासन और सरकार है।


इलाके में छह सौ मीटर से अधिक चौड़ी इंद्रावती पर किसी उच्च स्तर पुल की परिकल्पना को मूर्त रूप दे पाना कल तक सरकार और पुलिस दोनों के लिए चुनौतीपूर्ण था। नदी पार माओवादियों का प्रभुत्व पुल निर्माण में आड़े आने की पूरी संभावना थी और हुआ भी वही। पुल निर्माण की मुखालफत नक्सली शुरू से करते रहे, बावजूद तमाम विरोध, चुनौतियों को पार कर छिंदनार से पाहुरनार तक 689 मीटर लंबी पुल को मूर्त रूप देने में कामयाब रही की- स्टोन ।

बीजापुर के फुंडरी से आगे भोपालपट्नम तक नेशनल हाईवे समेत बीजापुर के कई हिस्सों में नक्सली चुनौती के बीच सड़कों का जाल बिछाने वाली की-स्टोन नामक कंपनी ने छिंदनार-पाहुरनार पुल निर्माण के अनुबंध के बाद उतार-चढ़ाव के बीच 14 माह में उच्च स्तर पुल का निर्माण पूरा करने में सफल रही।

छिंदनार के ठीक समानांतर करका घाट पर भी इस समय की स्टोन द्वारा दूसरे पुल का निर्माण कार्य जारी है।

छिंदनार में तैयार पुल ना सिर्फ पाहुरनार को बल्कि दंतेवाड़ा जिले के अलावा इसे अबूझमाड़ का दक्षिणी प्रवेश द्वार भी माना जा रहा है, वजह है पुल पार दंतेवाड़ा के कुछ गांवों को पार करते ही नारायणपुर जिले का ओरछा ब्लाक की सीमा शुरू हो जाती है। इसी इलाके में हांदावाड़ा जलप्रपात भी है, जो प्रदेश के उंचे और सबसे खूबसूरत जलप्रपातों में शुमार है।

मिली जानकारी के अनुसार फरवरी 2019 में छिंदनार पुल के लिए की स्टोन को अनुबंध मिलने के बाद लगभग पांच से छह महीने देरी से यहां कार्य आरंभ हुआ।

शुरूआती दौर में कंपनी के कर्मचारियों को नक्सलियों की तरफ से धमकियां भी मिली। पुल के विरोध में रैलियां भी हुई, जिसके बाद निर्माण कार्य को गति और सुरक्षा प्रदान करने के उद्देश्य से छिंदनार पर सुरक्षा बल का कैम्प भी स्थापित हुआ। हालांकि कैम्प बैठने के बाद भी यहां नक्सली हलचल कम नहीं हुई। पाहुरनार के नजदीक प्रेषर आईईडी की जद में आने से एक जवान की शहादत भी हुई। भय और विरोध के बीच अंततः की स्टोन ने पूरी शिद्दत से पुल निर्माण कार्य को जारी रखा। डेढ़ सौ से ज्यादा मजदूर, चार इंजीनियर, एक प्रोजेक्ट मैनेजर और एक इंचार्ज की 24 घंटे तैनाती कर मशीनरी से लैस की स्टोन ने 689 मीटर लम्बे और 8.4 मीटर चौड़े छिंदनार-पाहुरनार पुल को 14 माह में ही आकार दे दिया, के अलावा पुल से दो किमी पहले तक एप्रोच सड़क का काम भी इस समय जारी है।

हालांकि पुल बनने में जितना वक्त लगा यह उससे कम समय में बन सकता था। करीब आठ माह में यह पुल बन सकता था, लेकिन लगातार नक्सली विरोध, उत्पात और सुरक्षागत कारणों की वजह से इसे बनने में छह माह का समय अतिरिक्त लगा। आमतौर पर ऐसे उच्चस्तर पुल निर्माण में मषीनरी 24 घंटे वर्क पर होती है, लेकिन सुरक्षागत कारणों की वजह से यहां 9 घंटे ही काम होते थे, यही वजह रही कि इसे बनने में छह माह का समय अधिक लगा। कंपनी के कुछ कर्मचारियों की मानें तो छिंदनार-पाहुरनार पुल कंपनी के चुनिंदा और चुनौतीपूर्ण अनुबंध में शुमार है, जिसमें जोखिम की गुंजाईश हमेशा बनी रहती है, फिर भी कंपनी प्रबंधन, कर्मचारियों की मेहनत आखिरकार रंग लाई और अबुझमाड़ के इस दक्षिणी हिस्से पर विकास का वह पुल भी आज बनकर तैयार है, जिस पर से माड़ में विकास का कारवां गुजरेगा।

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